अहम और वहम
अक्सर आदमी
जब बड़ा आदमी
हो जाता है
फिर वह आदमी
नहीं रह जाता है
वह भूल जाता है
इंसानियत
छोड़ देता है
मासूमियत
वह बस
अहंकार में
डूबा अहम को
पोषित करने
लगता है
धीरे-धीरे
हो जाता है
वहम का शिकार
उसे लगता है
वही ईश्वर है
अहम और वहम
के मध्य दबकर
भी उसकी अकड़
बढ़ती ही जाती है
अकड़ की पकड़ से
नहीं छूट पाता है
फिर कभी
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