परिधि का विस्तार
लघुता की
सीमित परिधि
को असीम तक
खींच ले जाने
की जद्दोजहद
प्रतियोगिता
किसी से न
रखने की
दृढ़ इच्छाशक्ति
न तृण
न पर्वत
न समुद्र
न नदी
उसे नहीं
होना
अपने सिवा
और कुछ भी
क्षितिज के
बिंदु पर
पहुँचने की
आकांक्षा भी नहीं
बस........
जान लेना
आत्म को
संतों के
शब्दों में
अंशी के
अंश को
हो जाना
अपने जैसा
फिर बनाए
रखना
अपने को
अपने ही जैसा
विशुद्धता ही
चुनौती
और....
चुनौती के लिए
ही...
स्वीकार्य भाव
खालिस होना
ही तो
एकमात्र लक्ष्य
फिर चाहे
वह दुर्गम
या सुगम
स्वीकार
मार्ग पर
चलना भी
ठोकरें भी
जीत भी
यहाँ तक कि
हार भी
स्वीकार
हर चुनौती।
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