पुकार कर देखो तो
पुकार थी
हृदय की
पहुँची थी
हृदय तक
तुम्हारी एक
पुकार पर
मेरा आना
अपनी व्यस्त
दिनचर्या को
थोड़ा और
अस्त-व्यस्त
करने पर भी
मेरा तनावरहित
होकर
यूं मुस्कुराना
ज्यों चनकती है तीसी
मिट्टी के तौले में
भुनते हुए
तुम्हारी परोसी
थाली पर
यूं टूट पड़ना
जैसे वर्षों की
भूखी हूँ
ये बात
अलग है कि
मैं खाकर आई थी
तुम्हारे प्यार
भरे आग्रह पर
मैं मौन हो
खाती रही
विविध पकवान
और मिष्टान्न
वो कौन हैं जो
कहते हैं कि
अब अपनापन
छीज रहा है
जबकि हृदय की
पुकार
पहुँच रही है
हृदय तक
अबाध गति से
आज भी
अभी भी
बिल्कुल पहले
की तरह।
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