Monday 26 December 2022

पुकार कर देखो तो

 पुकार कर देखो तो


पुकार थी

हृदय की

पहुँची थी

हृदय तक

तुम्हारी एक

पुकार पर

मेरा आना

अपनी व्यस्त

दिनचर्या को

थोड़ा और

अस्त-व्यस्त

करने पर भी

मेरा तनावरहित

होकर

यूं मुस्कुराना

ज्यों चनकती है तीसी

मिट्टी के तौले में

भुनते हुए

तुम्हारी परोसी

थाली पर

यूं टूट पड़ना

जैसे वर्षों की

भूखी हूँ

ये बात

अलग है कि

मैं खाकर आई थी

तुम्हारे प्यार

भरे आग्रह पर

मैं मौन हो

खाती रही

विविध पकवान

और मिष्टान्न

वो कौन हैं जो

कहते हैं कि

अब अपनापन

छीज रहा है

जबकि हृदय की

पुकार

पहुँच रही है

हृदय तक

अबाध गति से

आज भी

अभी भी

बिल्कुल पहले

की तरह।


No comments:

Post a Comment