Sunday 4 December 2022

लाडला

 लाडला


पीछे मुड़कर

देखना

चाहता था

रुक-रुक कर

चलना चाहता था

रास्ते की खूबसूरती

पलकों में

उतारना चाहता था

पर उसे

चलाया गया

बिना उसकी

मर्ज़ी पूछे

भगाया गया

तेजी से

जैसे कि

उतारा गया हो उसे

फार्मूला वन रेस में

वह तो बस

घिसटता रहा

खिसकता रहा

बस जैसे-तैसे

घायल होता

क्षत विक्षत 

होकर भी 

आगे बढ़ता रहा

छिले पाँवों की जलन

मन को

छीलती रही

मन जाने कैसे

कब और क्यों

रिवर्स गियर

में चलने लगा

जितना ही

आगे बढ़ता जा रहा है

मन उतनी ही

तेजी से

अतीत की

तरफ भागा जा

रहा है

सब समझते हैं

वह महँगी

कुर्सी पर बैठा

बॉस है

बस वही

जानता है

कि वह

माँ की गोद

और

पिता के कंधे

पर बैठा 

नन्हा बालक है

जिसे अफसर

बनाने के

लिए जबर्दस्ती

ट्रेन में

बिठा होस्टल

भेज दिया गया था

बहुत हुआ

अब आँखें मूंद

खयालों में ही सही

बना रहना

चाहता है

बस्स 

अपने माँ-पिता

का लाडला

और कुछ भी नहीं।


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