विश्वास ने कभी
अपना स्वभाव नहीं
बदला
अडिग बना रहा
जहाँ चुका
सूत भर भी
वहाँ से चलता बना
जहाँ से एक बार
चला
पलट कर
आया भी नहीं
छलावा रूप
बदल-बदल कर
लोगों को अपना
शिकार बनाती रही
प्यार लुटता रहा
कपट लूटती रही
विश्वास बाहें फैलाकर
प्यार का स्वागत
करता रहा
छलावा छल-कपट
की दुकान
सजाती रही।
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