Tuesday 20 December 2022

रस्साकशी

 रस्साकशी


कठिनाई आई

बारंबार

रंगरूप बदलकर

नए-नए

लिबास पहनकर

इत्र-फुलेल से

महकाती खुद को

रुआब झाड़ती

लाट साहबी

हम भी ठहरे

जन्मजात जुझारू

कठिनाई आती रही

टकराती रही

मुँह के बल

गिरती-पड़ती

घुटने, केहुनी,ठुड्डी

चोट खा

सहलाती रही

मुकाबला बराबरी का

टक्कर भी काँटे की

यूँ ही चलती

रही है

कठिनाई सँग रस्साकशी


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