रस्साकशी
कठिनाई आई
बारंबार
रंगरूप बदलकर
नए-नए
लिबास पहनकर
इत्र-फुलेल से
महकाती खुद को
रुआब झाड़ती
लाट साहबी
हम भी ठहरे
जन्मजात जुझारू
कठिनाई आती रही
टकराती रही
मुँह के बल
गिरती-पड़ती
घुटने, केहुनी,ठुड्डी
चोट खा
सहलाती रही
मुकाबला बराबरी का
टक्कर भी काँटे की
यूँ ही चलती
रही है
कठिनाई सँग रस्साकशी
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