Friday 16 December 2022

शिवशंभु

 शिवशंभु


बहुत याद आते हो 

शिवशंभु

तुम्हारी तरह 

चिट्ठे तो क्या

एक छोटी सी 

पर्ची लिखने का भी 

मुझे शऊर नहीं

तुम होते तो 

कुछ पूछ भी लेती 

और इसी तरह 

धीरे-धीरे

कुछ सीख भी लेती 

शिवशंभु तुम तो बस 

तुम ही थे 

कहाँ हो सका 

कोई भी तुझसा 

इतनी खरी-खरी 

कैसे कह लेते थे 

बताओगे?

बिना डरे 

लॉर्ड कर्ज़न को भी  

उसकी गलतियाँ 

गिना देते थे

वो भी ऐसे 

हँसते-खेलते

बुलबुल उड़ाते 

एकदम मजे में

खुद को बूढ़ा भंगड़ 

भी कह लेते थे 

कठिनाई में भी 

हँस लेते 

और हँसा भी देते थे 

शिवशंभु 

तुम तो बस तुम्हीं थे 

आज छोटे-बड़े 

असंख्य लॉर्ड कर्ज़न 

कर रहे मनमानी 

तब तो एक थीं 

विक्टोरिया महारानी 

आज हैं अनगिनत

ताकत का जश्न 

देख रहा है 

दीन-हीन  

जन-समूह 

क्या कहूँ 

कितना कुछ है 

होठों पर बेबसी 

आँखों में आँसू 

पर बोलने की 

हिम्मत अब किसमें

रह गई है शिवशंभु?

बोलने वालों 

को तो अब 

डराया जाने लगा है 

लिखने की 

हिम्मत कौन जुटाए 

आज चिट्ठों की 

तुम्हारे चिट्ठों की 

जरूरत है 

तुम्हारे जैसे 

हौसले की जरूरत है 

इसीलिए तो तुम 

और बहुत 

याद आते हो शिवश्म्भु 



No comments:

Post a Comment