मातृभाषा एक अनुभूति
झरने की कल-कल ध्वनि
कोयल की कर्णप्रिय कूक
नन्ही चिड़िया का कलरव
बुलबुल की तान लहरी सी
मधुर है मेरी मातृभाषा
इसकी सुगंध
रची-बसी है
मेरे हृदय में ऐसे
जैसे अमराई में
पसरी हो
आम्रमंजरी की सुरभि
बगिया में बेला
और गुलाब की भीनी
भीनी महक
मेरा अंतरतम
पुलक उठता है
इसे बोलकर-सुनकर
रंभाती गाय का स्वर
पहचान लेता है जैसे
दुधमुंहा बछड़ा
ठीक उसी तरह
पहचान लेती हूँ मैं
अपनी मातृभाषा
मेरी मातृभाषा
मेरी माँ है
मेरी जीवनशैली है
मेरे अंतरतम् की
अनुभूति है
जिसे सँजोती हूँ
हर क्षण
मेरी मातृभाषा
मेरा जीवन है
जिसे जीती हूँ
हर क्षण।
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