पक्की सहेली
जहाँ वो जाए
वहीं पहुँचे मुसीबत
छोड़ती नहीं है साथ
जिद्दी है
बेशरम भी
डाँट-फटकार, मार की भी
नहीं उसे परवाह
पूछती है वह
आँखें तरेड़ कर
मैं तो
चुपचाप निकली थी
तूने कब देख लिया
यूं बेताल की तरह
बना दिया
मुझे विक्रम
बख्श दे मेरी जान
छोड़ दे मुझे
हँसने लगी
मुसीबत
जान भी कहती
और जीतेजी
जाने को भी
तभी तो मैं बोलूँ
तू मासूम है
भोली है
पगली है
तुझे कैसे छोड़ दूं
अकेली
प्यारी, दुलारी, नार-नवेली
तू मान न मान
हूँ मैं तेरी
पक्की सहेली
पक्की सहेली।
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