Saturday 24 December 2022

पक्की सहेली

 पक्की सहेली


जहाँ वो जाए

वहीं पहुँचे मुसीबत

छोड़ती नहीं है साथ

जिद्दी है

बेशरम भी

डाँट-फटकार, मार की भी

नहीं उसे परवाह

पूछती है वह

आँखें तरेड़ कर

मैं तो

चुपचाप निकली थी

तूने कब देख लिया

यूं बेताल की तरह

बना दिया

मुझे विक्रम

बख्श दे मेरी जान

छोड़ दे मुझे

हँसने लगी

मुसीबत

जान भी कहती

और जीतेजी

जाने को भी

तभी तो मैं बोलूँ

तू मासूम है

भोली है

पगली है

तुझे कैसे छोड़ दूं

अकेली

प्यारी, दुलारी, नार-नवेली

तू मान न मान

हूँ मैं तेरी

पक्की सहेली

पक्की सहेली।


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