Saturday 3 December 2022

मन लगे कैसे

 मन लगे कैसे


जो लग जाए

मन न लगने का रोग

तो मन फिर

लगे कैसे

जब मन लग जाए

मन सँग

तो मन फिर

लगे कैसे

लागे जब से नैन

उन नैनों सँग

न रहा फिर

मन का चैन

भला ये

मन फिर लगे कैसे

लिए गए वो

मन मेरा

अपने ही सँग 

माँगा तो

गए पलट

न देखा मैंने 

तेरा मन

देखो रखा होगा

तुमने ही

कहीं

हाँ यहीं कहीं

ढूँढो खुद

न करो मुझे तंग

अब मन जो

हो ही न

अपने सँग

तो फिर मन

लगे कैसे

भोले भाले बन

ले चले

मेरा मन

पूछूँ तो जाएँ मुकर

ये मन फिर

लगे कैसे

मेरी ही मति

मारी गई जो

मिलाई नज़र

नज़र थी या क़यामत

क्या जानूँ मैं

नन्ही सी भोली सी

छोटी सी मैं

नादान

भटकती फिरती हूँ

जानी-पहचानी

गलियों में

कोई दे न

रास्ता ढूंढ

डरी सहमी सी

नन्ही जान

कहो मन

लगे कैसे

काली पलकें

काली भौंहें

चमकती 

काली चंचल पुतली

घिरी बैठी है

पहरों बीच

न दिखे जो

प्यारी सूरत 

तो बोलो न

मन लगे कैसे?


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