छूटती है ट्रेन
बहुत कुछ
छूट जाता है
पीछे
जब स्टेशन
से छूटती
है ट्रेन
डबडबा जाती हैं
आँखें
भीतर कुछ
टूट जाता है
जब स्टेशन से
छूटती है ट्रेन
जाने वाले
और छोड़ने वाले
छुपाने लगते हैं
अपनी नज़रें
लाख छुपाकर भी
टकराती हैं
नजरें
मन में उमड़ता है
यादों का समंदर
जब स्टेशन से
छूटती है ट्रेन
अब के गए
क्या जाने
लौटेंगे कब
चिंता की
उभरती लकीरें
खो जाती हैं
पीछे भागते
दृश्यों में
जैसे एक पूरा जीवन
पीछे छूट जाता है
जब स्टेशन से
छूटती है ट्रेन
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