Friday 30 December 2022

छूटती है ट्रेन

 छूटती है ट्रेन


बहुत कुछ

छूट जाता है

पीछे

जब स्टेशन

से छूटती

है ट्रेन

डबडबा जाती हैं

आँखें

भीतर कुछ

टूट जाता है

जब स्टेशन से

छूटती है ट्रेन

जाने वाले

और छोड़ने वाले

छुपाने लगते हैं

अपनी नज़रें 

लाख छुपाकर भी

टकराती हैं

नजरें

मन में उमड़ता है

यादों का समंदर

जब स्टेशन से

छूटती है ट्रेन

अब के गए

क्या जाने

लौटेंगे कब

चिंता की

उभरती लकीरें

खो जाती हैं

पीछे भागते

दृश्यों में

जैसे एक पूरा जीवन

पीछे छूट जाता है

जब स्टेशन से

छूटती है ट्रेन


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