भीड़ को चीरकर
दर्द से
गुजरते हुए
सहनशीलता का
पाठ पढ़ते हुए
हुआ निर्माण
रोम रोम
देता है गवाही
कि आदत
पड़ गई है
दर्द सँग जीने की
आँखें हैं कि
फिर भी
रोती हैं
हर बार
दिल है कि
कचोटता है
हर बार
रोम-रोम को दर्द से
गुजरने की आदत
आँखों को
रोने की आदत
दिल को
कचोटने की
आदत
इन सबको
जानकर
पहचान कर
भीड़ को
चीरकर
आगे बढ़ने की आदत।
16. रंगमंच
रंगमंच पर
आकर अवाक
मौन कलाकार
अपने जीवन को
ही
मंच पर
जीता हुआ
लोगों की
वाहवाही से
कुछ छुपता हुआ
बचता हुआ
मैं ने कुछ भी
नहीं किया
अभिनय तो
बिल्कुल भी नहीं
बस अपने आप को
आपके सामने
रखा है
अभिनय तो
मैं करता हूँ
अपने जीवन में
अपने दुखों को
छुपाने हेतु
तब कोई नहीं
कहता
वाह! वाह!
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