नज़र की दस्तक
आसमान …..
गिरा रहा है आँसू
नैन बरस रहे हैं
ये काले बादल भी
आँखों के काजल
सँग घुलमिल
फैला रहे हैं कैसा
स्याहपन?
जो....
नज़रों को धुँधलाता
दिलों में
कालिमा पसारता
धुँआ धुँआ होकर
उड़ता चला
जा रहा
रोते आसमान को
और रुलाने
बरसते नैनों
ने संभलने की
की है
पुरजोर कोशिश
उम्मीद से
भरकर अब
वह सुंदर नज़र
खटखटा रही है
दरवाज़ा
दस्तक कानों तक
पहुँच ही
नहीं रही है
तंत्रिका – तंत्र
सुन्न है
होना ही है
उसे सुन्न
आखिर वह भी
एक तंत्र जो ठहरा।
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